भागता शहर, दो पहिये, चार पहिये । दैत्याकार वाहन । समय के चक्र जैसे दौड़ते पहिये। ये शहर नहीं रुकने वाला।
ब्लॉग
हैप्पी बर्थडे सुधा
तुम मानोगी नहीं लेकिन आज गज़ब की स्फुर्ती है शरीर में। घुटना बोल रहा है जगजीवन बाबु जाईये दौड़ आईये। आखिर हमारी सुधा का बर्थडे है। यहीं तो है मेरा वेलेंटाइन। याद है तुम कैसे शर्मा जाती थी। मेघा देख लेगी, मेघा सुन लेगी। यहीं रट लगा रखती थी। बाप हो गया तो क्या बीवी से प्यार करना छोड़ दूँ?
अकेलापन
तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी और रोज़ी-रोटी की भागदौड़ में खुद के लिए समय निकल पाना मुश्किल हो जाता है। इन्सान के भीतर उसकी हर समस्या का हल छुपा होता है। लेकिन शोर इतना है की हम अपने अंतर्मन की आवाज़ सुन नहीं पाते। कुछ समय निकालिये। खुद से बात कीजिये।
झुमकी (पाँचवाँ अध्याय)
रिश्ते कुछ कुछ पौधों की तरह होते हैं । प्यार की धूप, अपनेपन की बूँदें और खट्टी-मीठी बातों की खाद से रिश्ते फलते फूलते हैं । ये सब न हो, तो पौधों के जैसे धीरे धीरे मुर्झा जाते हैं । बस इक टीस रह जाती है । लेकिन एक बात है । मुर्झाये रिश्तों में फिर से जान आ सकती है । सवाल ये है की पहल कौन करे?
बस अब बहुत हुआ
गरीबों को ज्यादातर लोग या तो दया से देखते हैं या हिकारत से। कोई उनके लिए कुछ करना चाहता है तो कोई उनके होने की शिकायत करता है। हम ये भूल जाते हैं की गरीब होने का मतलब ये नहीं की वो मजबूर भी है या भूखा है। हर गरीब इंसान हमारे अनाज का भूखा नहीं है। उन्हें सम्मान चाहिए।
प्रिये सुधा
जगजीवन बाबू को सेवानिवृत हुए ८ साल हो चुके हैं। २ साल पहले उनकी धर्मपत्नी सुधा का देहाँत हो गया था। एक बेटी है मेघा। वो शादी के बाद से ही अमेरिका में रहती है। उम्र के आख़री पड़ाव का अकेलापन अब काटने लगा है। जगजीवन बाबू अपने मन की व्यथा व्यक्त करने के लिए अपनी दिवंगत पत्नी को खत लिख रहे हैं।
झुमकी (चौथा अध्याय)
अमीना के पास बोलने को इतना कुछ कैसे होता है ? वो घर भी संभालती है और बाजार में रोज़ाना फूल बेचने भी आती है। घर पर अनवर है, सास ससुर हैं, एक ६ साल का बेटा भी है। इतना सब कैसे संभाल लेती है। कोई शिकायत नहीं। हमेशा खुश। हमेशा एक चुलबुलापन। क्यों बुधिया मुझे अनवर की तरह खुश नहीं रख पाता?
मेरी कविता
जीवन के सफर में मशरूफ और मजबूर इंसान अपनी कई यादें पीछे छोड़ आता है। पीछे छूट गई ये यादें हीं हमारे जीवन का सार है। आईये अपनी व्यस्त दिनचर्या से कुछ समय चुरा कर इन यादों से मुलाकात करते हैं।
अम्मा जी के नुस्खे – भाग २
पता हीं नहीं चला कब इच्छायें हमारी ज़रुरत बन गयी। इच्छाओं के पीछे भागते भागते इंसान अपना सारा जीवन यूँ हीं व्यर्थ कर रहा है। ख़ुशी क्या है ? सुकून क्या है ? इनकी परिभाषा बाजार, टीवी, रेडियो और इंटरनेट ने बदल दी है। कौन सा खाना हमारी भूख बेहतर मिटा सकता है ? किस कार में ऑफिस जाना हमारे लिए ज्यादा सुरक्षित है ? छुट्टियों में क्या किया जाये ? सालगिरह पर बीवी को क्या तोहफा दिया जाये ? ये सवाल करना हमें सिखाया गया। और फिर इनके महंगे जवाब दिए गए।
सेव द टाइगर (Save The Tiger)
भारत में बाघों की संख्या में २०१४ से २०१८ के बीच ३३% की वृद्धि हुई है। इससे बाघ संरक्षण (Save The Tiger) के प्रयासों को बल मिला है। २०१८ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में बाघों की कुल संख्या २९६७ है। ये पूरे विश्व में बाघों की कुल संख्या (३१५९) का ८०% है। प्रयास जारी रहने चाहिए और हम सबको को इसका समर्थन कर लोगों में और जागरूकता लानी होगी।