किसका कसूर?
गरीबी और मुफलिसी किसका कसूर है ? गरीब का? या फिर गरीबों की बस्ती को महलों की ऊँचाइयों से अनदेखा…
हिंदी कहानियाँ, कवितायेँ, ख़याल
हिंदी कवितायेँ
गरीबी और मुफलिसी किसका कसूर है ? गरीब का? या फिर गरीबों की बस्ती को महलों की ऊँचाइयों से अनदेखा…
दिन भर की भूख के बाद, जब मज़दूरी कर लौटी माँ रात को उसे रोटी देती है, उसकी दुनिया जैसे…
किसी भी चीज़ की कीमत उसे इस्तेमाल करने वाले की ज़रुरत पर निर्भर करती है। जो ५ रुपये का सिक्का…
"तेरे जाने की वजह" एक प्रेमी की कुछ पंक्तियों का संग्रह है। अपनी प्रेमिका से अलग होने के बाद, प्रेमी…
ये हिंदी कविता तन्हाई, कवि का अपनी प्रेमिका से बिछड़ जाने के एहसास का वर्णन है। "याद है वो तुमसे…
मैं ढून्ढ लूँगा अपना रब इंसानों में कहीं, पत्थरों से मैं यूँ भी बात करता नहीं। इतना है खून बहा,…
तेरे अरमानों का कत्ल करता रहा, तेरे समर्पण से खुद को मर्द माना। मर्दानगी का खोखला एहसास।
रात की खामोशी और तन्हाई जीवन सँघर्ष में एक अल्पविराम के जैसे हैं।
सब अनबन है, उलझन है । भोले अब तू हीं राह दिखा | जय भोलेनाथ । जय शिव शंकर |
इनका कोई पक्का ठिकाना नहीं होता है। महानगरों में मेहनत मज़दूरी कर अपने परिवार का पोषण करने वाले ये मेहनतकश…