बस दो झोला भर है वसीयत मेरी।
ज़िंदगी समेट कर
निकल पड़ा हूँ
ज़िंदगी की तलाश में।
***
कल गुजरूंगा तुम्हारे शहर से मैं।
दे देना मुठ्ठी भर हौसला मुझको।
ज़िंदगी समेट कर
निकल पड़ा हूँ
ज़िंदगी की तलाश में।
***
झोला गरीब है, गरीब का
फकीर से तुम क्या लोगे?
अगर वक्त की कंजूसी न हो
चल कुछ दूर साथ में।
ज़िंदगी समेट कर
निकल पड़ा हूँ
ज़िंदगी की तलाश में l
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मैं हूँ और पथ है
पथ पर चलते रहने की हठ है
तेरा मोह एक भार था
त्याग आया हूँ
मेज़ पर जो छोड़ आया हूँ
वो मेरा आखिरी खत है ।
ज़िंदगी समेट कर
निकल पड़ा हूँ
ज़िंदगी की तलाश में l
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मन मॆं उत्साह
कदम मॆं वेग
पवन का कम्बल
माटी की सेज ।
जिसका कोई नगर नहीं
हर मोड़ पे उसकी मन्ज़िल है ।
क्या हीं लिख लोगे लिफाफे पर तुम?
तेरे सच सा
लिफाफा भी सफेद है ।
तेरा झूठ लपेटे जा रहा हूँ ।
निकल पड़ा हूँ
हठ कर, पथ पर
मैं अपनी हीं तलाश में l