पता हीं नहीं चला कब इच्छायें हमारी ज़रुरत बन गयी। इच्छाओं के पीछे भागते भागते इंसान अपना सारा जीवन यूँ हीं व्यर्थ कर रहा है। ख़ुशी क्या है ? सुकून क्या है ? इनकी परिभाषा बाजार, टीवी, रेडियो और इंटरनेट ने बदल दी है। कौन सा खाना हमारी भूख बेहतर मिटा सकता है ? किस कार में ऑफिस जाना हमारे लिए ज्यादा सुरक्षित है ? छुट्टियों में क्या किया जाये ? सालगिरह पर बीवी को क्या तोहफा दिया जाये ? ये सवाल करना हमें सिखाया गया। और फिर इनके महंगे जवाब दिए गए।

Hindi comic strip on needs and wants
Hindi Cartoon on Needs and Wants
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अब वक़्त है कि हम खुद से सवाल करें ? कितना ज़रूरी है ? क्या ज़रूरी है ? इच्छाओं और ज़रूरतों में फर्क करना सीखना होगा। इसलिए नहीं कि अपनी और अपने परिवार की इच्छायें पूरी करना गलत है।  इसलिए कि अपनी हैसियत से बढ़ कर, ज़माने और बाजार के दबाव में उन इच्छाओं के पीछे भागना गलत है। अपने बुज़ुर्गों से बात करें।  उनसे सलाह लें। हमारी खुशियां हमारे आस पास, हमारे घर और परिवार में है। उन्हें ढूंढ़ने कहीं दूर जाने की ज़रुरत नहीं है।

2 विचार “अम्मा जी के नुस्खे – भाग २&rdquo पर;

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