भारत अनेक भाषाओँ, धर्मों और प्रांतों से मिल कर बना एक ख़ूबसूरत गुलदस्ता है। इनमें से किसी भी एक फूल को दूसरों से ऊँचा या नीचा स्थान नहीं दिया जा सकता। सभी का महत्व एक समान है। और फिर भाषा तो बहती नदी की भाँति गतिमान है और रूप बदलती रहती है।
हिंदी दिवस पर कविता लिख मैंने इसी भाव को व्यक्त किया है।

आप सभी को हिंदी दिवस की शुभकामनायें।
हिंदी दिवस पर कविता
आज हिंदी दिवस है
सोचता हूँ मेरी हिंदी में कुछ मिलावट हो जाये
नमस्ते नही, वणक्कम कहूँ, आदाब कहूँ
नफरत मद्धम हो, आबाद मोहब्बत हो जाये
भाषाओं में रिश्ता बहनों सा है
बहनों में कोई बड़ा, छोटा नहीं
इस गुलदस्ते के सारे फूल बेशकीमती
यहाँ कोई भी सिक्का खोटा नहीं
अब माँ को तू आई, अम्मा बोल
भाई को तू दादा, अन्ना बोल
बाँटने की जब कोई कोशिश करे
एकजुट होकर तू हल्ला बोल
हिंदी को तुम बहने दो, जैसे गँगा मैया
बंगाली का छौंका लगने दो
मराठी का तड़का लगने दो
ओड़िया की चाशनी भी हो
पंजाबी सा तुम भड़कने दो
उर्दू की तहज़ीब हो
तेलुगु का स्वाद भी चखने दो
आज हिंदी दिवस है
नफरत को ख़त्म करने की थोड़ी जुर्रत हो जाये
अपने देश की हर भाषा कहने, सुनने की शिद्दत हो जाये
नमस्ते नही, वणक्कम कहूँ, आदाब कहूँ
सब साथ रहें, सब साथ बढ़ें
आबाद मोहब्बत हो जाये
हिंदी कवितायेँ सुनने के लिए आप मेरे यूट्यूब वीडियोस देख सकते हैं। धन्यवाद।