ऊँचे मकानों में बैठ
ना जाने क्यों
यूँ गुरूर होता है?

ऊँच नीच के
ये कैसे फासले ।
क्यों एक इंसान
दूसरे का हुज़ूर होता है?

तु झुकता है
माना
अपनी गरीबी से
तु मजबूर होता है।

अपने अहम के वास्ते
तुझे झुकने देना
ये भी तो
कसूर होता है।

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