ऊँचे मकानों में बैठ
ना जाने क्यों
यूँ गुरूर होता है?
ऊँच नीच के
ये कैसे फासले ।
क्यों एक इंसान
दूसरे का हुज़ूर होता है?
तु झुकता है
माना
अपनी गरीबी से
तु मजबूर होता है।
अपने अहम के वास्ते
तुझे झुकने देना
ये भी तो
कसूर होता है।
हिंदी कहानियाँ, कवितायेँ, ख़याल
ऊँचे मकानों में बैठ
ना जाने क्यों
यूँ गुरूर होता है?
ऊँच नीच के
ये कैसे फासले ।
क्यों एक इंसान
दूसरे का हुज़ूर होता है?
तु झुकता है
माना
अपनी गरीबी से
तु मजबूर होता है।
अपने अहम के वास्ते
तुझे झुकने देना
ये भी तो
कसूर होता है।
भूल न जाए ये ज़माना। ऐ मौत तेरे आने से पहले, कुछ लफ्ज़ छोड़ जाऊँ किताबों में मैं। Exploring life, with some humor. Indian | Poet #HindiPoetry #शायरी #Poetry