सवेरे सात बजे
बिना इज़ाज़त
किसी भले मानस की
काली स्कूटर पे बैठ
चेहरे पर खिलती धूप
बीच बाजार अंगड़ाई ली
हाथ पाँव लिया ऐंठ |
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पास में बजरंग बली का
एक छोटा सा मंदिर
पुजारी घंटी बजा रहा है |
इस बाजू
चाय टापरी का अधेड़ मालिक
अंगीठी जला रहा है |
***
इतने विशाल बजरंग बली
इस छोटे से मंदिर में
भला कैसे समायें हैं ?
कटक-पूरी रोड पर
अधेड़ चाय वाले ने
कुल्हड़ कहाँ से मंगायें हैं ?
***
जब समय की पाबंदी न हो
तब मन में
ऐसे कई सवाल आते हैं
सही जवाब पर
कोइ चेक नहीं मिलता
न बच्चन साहब
ताली बजाते हैं |
***
पर यहीं तो जीवन की मिठास है
छोटे टुकड़ों में बटें पल
न ओर, न छोर
तो कुछ पल, प्रतिदिन
तू भी हठ छोड़
बैठ कहीं एकाँत में
कुल्हड़ की चाय के साथ
चेहरे पर थोड़ी धूप खिले
और खुद से करो तुम बात |