जो तेरे रूप के गीत गाता हूं
तेरी ख़ुशी झूठी सी लगती है।
तू नही चाहती इस मिट्टी पर गीत
बुझी बुझी सी,
तेरी हंसी रूठी सी लगती है।
जानता हूं,
रूप एक आडंबर है प्रिये
जीवन की शाम में क्या मोल है इसका ?
बांध कोई रेशम मेरी आंखों पर आज।
अंधी नज़रों को भी
तू ज़िन्दगी सी लगती है।
मेरी चाह कोई आईना नहीं है
इसमें प्रतिबिम्ब
तेरे मन का है।
निश्छल
निर्मल
कपट नहीं कोई।
चकाचौंध की दुनिया में
तू सरल
सादगी सी लगती है।
तेरा मन है
वो कुंदन है।
तन की चादर में लिपटा
इस चादर का क्या मोल प्रिये ?
तेरी ममता
तेरा चन्दन है।
रूप की बहती
इस गागर का क्या मोल प्रिये ?
ढलता दिन हो
या रात अँधेरी
जले जो निरंतर
ह्रदय में मेरे
तू रौशनी सी लगती है।
बांध कोई रेशम मेरी आंखों पर आज।
अंधी नज़रों को भी
तू ज़िन्दगी सी लगती है।
“तेरा रूप&rdquo पर एक विचार;