गरीबों को ज्यादातर लोग या तो दया से देखते हैं या हिकारत से। कोई उनके लिए कुछ करना चाहता है तो कोई उनके होने की शिकायत करता है। हम ये भूल जाते हैं की गरीब होने का मतलब ये नहीं की वो मजबूर भी है या भूखा है। हर गरीब इंसान हमारे अनाज का भूखा नहीं है। उन्हें सम्मान चाहिए।
दया, घृणा
हिकारत
परोपकार
बस अब बहुत हुआ
न मुझे तू शर्मिंदा कर
न कर कोई उपकार
बस अब बहुत हुआ।
हाँ मेरा घर छोटा है
खिड़की पर फटी चादर का पर्दा
बारिश में छत टपकती है
सूखी रोटी खा लेता हूँ
भूखा मैं क्या न करता ?
अपनी लम्बी काली गाड़ी में बैठ
क्यों तू मेरे घर में झाँके?
ओह तेरी इन नज़रों से मैं
कैसे छुपाऊँ अपना सँसार
बस अब बहुत हुआ।
हाँथ बढ़ा चला आता है तू
त्यौहार हो या श्राद्ध हो
तली पूरियां, बासमती का पुलाव
जलेबी, मीठा पकवान
धर देता है मेरे बालक के हाँथ पर
वो बेचारा मजबूर
तू मगरूर इंसान
तेरे पुण्य का घड़ा भर
कमज़ोर होता है
मेरा परिवार
बस अब बहुत हुआ।
Behad marmik baato ko aapne unmuktata se likha hai.
# Kaise chupa lu teri nazaron se
Aapne is sansar ko…
धन्यवाद किशन जी 🙏
Bahut hirday vidarak bat kahi aapne garibi ek abhishap nahi hai lekin ye log banate hain
हर गरीब किसी लाभ के मोह में नहीं है । वो भी हमारी तरह अपने जीवन में व्यस्त है और शायद खुश भी है।
सही विचार है. हर व्यक्ति को अपना आत्मसम्मान प्यारा होता है.
और सम्मान पाने का हक भी सभी को है। धन्यवाद रेखा जी 🙏