तुम जब मुझे मेरी जात बताते हो
अपनी औकात बताते हो।
जाओ नहीं आता तेरे मंदिर मैं फरियाद करने।
वो नही मेरा भगवान
जिसे तुम बिठाते हो।
मैं ढून्ढ लूँगा अपना रब इंसानों में कहीं
पत्थरों से मैं यूँ भी बात करता नहीं।
इतना है खून बहा
इतनी है लाशें देखी
तलवारों से,
हत्यारों से,
अब मैं डरता नहीं।
सदियों से ये तेरी रीत चली।
क्या तूने पाया ?
मैंने क्या खोया ?
तू वही धर्मपुरुष,
मैं आज भी अधर्मी हूँ।
तू वही कर्मपुरुष
मैं जूता-जूठा
लकड़ा-चमड़ा
आज भी कुकर्मी हूँ।
क्या तूने पाया ?
मैंने क्या खोया ?
तेरा धर्म है तुझको अर्पण
मैं पीठ दिखा के जा रहा हूँ।
तू खुद को मान धर्मविजेता।
माँ
मैं घर आ रहा हूँ।
मैं घर आ रहा हूँ।
रोटी की कलाकार तुम – माँ के लिए कविता पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें।
बहुत सुंदर लिखा है आपने।।।।
शुक्रिया दोस्त 🙏
बहुत खूब ।
धन्यवाद 🙏