जीवन के सफर में मशरूफ और मजबूर इंसान अपनी कई यादें पीछे छोड़ आता है। पीछे छूट गई ये यादें हीं हमारे जीवन का सार है। आईये अपनी व्यस्त दिनचर्या से कुछ समय चुरा कर इन यादों से मुलाकात करते हैं।

आज फिर आया हूँ तुम्हारे पास

मेज़ की दराज़ से कोरा कागज़ निकाल लिया है।

अब पढ़ लो तुम मेरा मन

मेरे सवाल, मेरे ख़याल।

अपनी स्याही से उन्हें आकार दो

मेरी कविता तैयार हो।


सीधी सपाट राहें नहीं हैं

सवालों का ताना बाना है।

यादों की उधेड़ बुन है

जिनसे हो कर तुम्हे जाना है।

कुछ बीती बातें

कुछ बंद पड़ी यादें।

बचपन की कहानियाँ

जवानी के सपने

जीत की खुशियाँ

हार जाने की निराशा

कुछ पराये

कुछ किस्से अपने।

इस कोरे कागज़ पे आज

रंगों, शब्दों की बौछार हो।

मेरी कविता तैयार हो।


बायें से तीसरी गली

चौथा कमरा

कमरे में कई तसवीरें हैं।

हर तसवीर पे है इक चेहरा

दीप जला कर देखो

इन हँसते मुस्कुराते चेहरों में

इन हताश परेशान चेहरों में।

समय की धूल हटा कर देखो

कुछ अपने

कुछ अनजान चेहरों में

तुम्हे मेरी कहानी मिलेगी।

आज लिखो ये कहानी तुम

हर सवाल, हर याद

हर चेहरे को पुकार लो

मेरी कविता तैयार हो।

4 विचार “मेरी कविता&rdquo पर;

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