श्वेत-श्याम तस्वीरों में

बोलती आँखें

दूर-पास, पास-दूर

जाने किसको है ताके?

***

बेरंग नही ये रूप-सौंदर्य

इस कजरी में इन्द्रधनुष समाये

हाँ, इज़ाज़त नही मिलती ऐसे

कोशिश में कई देवदास गँवाए |

***

देवदास क्या जाने ?

वो तन के हाव समझता है

मन के भाव बूझ न पाया

ये कजरी सहज पहेली है

पहेली वो बूझ न पाया |

***

क्या चाहे है कजरी ?

प्रेम

क्या वो माँगे प्रेम से पहले ?

सम्मान

बस इतनी सरल पहेली है

इतने सहज अरमान

***

देख इंतज़ार में साँझ हो चली है

श्वेत-श्याम तस्वीरों में

अब भी बोलती आँखें

दूर-पास, पास-दूर

जाने किसको है ताके?

इस कविता की प्रेरणा है डर्क स्कीबा द्वारा ली गयी रोशेल पोटकर की श्वेत श्याम तस्वीरें | धन्यवाद डर्क और रोशेल |

4 विचार “रोशेल (कजरी)&rdquo पर;

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