श्वेत-श्याम तस्वीरों में
बोलती आँखें
दूर-पास, पास-दूर
जाने किसको है ताके?
***
बेरंग नही ये रूप-सौंदर्य
इस कजरी में इन्द्रधनुष समाये
हाँ, इज़ाज़त नही मिलती ऐसे
कोशिश में कई देवदास गँवाए |
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देवदास क्या जाने ?
वो तन के हाव समझता है
मन के भाव बूझ न पाया
ये कजरी सहज पहेली है
पहेली वो बूझ न पाया |
***
क्या चाहे है कजरी ?
प्रेम
क्या वो माँगे प्रेम से पहले ?
सम्मान
बस इतनी सरल पहेली है
इतने सहज अरमान
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देख इंतज़ार में साँझ हो चली है
श्वेत-श्याम तस्वीरों में
अब भी बोलती आँखें
दूर-पास, पास-दूर
जाने किसको है ताके?

इस कविता की प्रेरणा है डर्क स्कीबा द्वारा ली गयी रोशेल पोटकर की श्वेत श्याम तस्वीरें | धन्यवाद डर्क और रोशेल |
वाह! बहुत खूबसूरत रचना है आप की! ♥️♥️♥️
धन्यवाद अपर्णा जी 🙏
Too good: So beautifully expressed the desires of a women, any women!
क्या वो माँगे प्रेम से पहले ?
सम्मान
बस इतनी सरल पहेली है
इतने सहज अरमान
धन्यवाद रविंद्र जी