तु सहती रही
पर हँसती रही।
वो सहमी चुप्पी
मैंने कभी न तेरा दर्द जाना।
तेरे अरमानों का कत्ल करता रहा
तेरे समर्पण से खुद को मर्द माना।

आँखों में सवाल, होंठों पे कंपन क्युँ है?
कर सकती हो इन्कार।
गर मन में है विरोध
तो तन का ये समर्पण क्युँ है?
तु सहती रही
पर हँसती रही।
वो सहमी चुप्पी
मैंने कभी न तेरा दर्द जाना।
तेरे अरमानों का कत्ल करता रहा
तेरे समर्पण से खुद को मर्द माना।
आँखों में सवाल, होंठों पे कंपन क्युँ है?
कर सकती हो इन्कार।
गर मन में है विरोध
तो तन का ये समर्पण क्युँ है?