न छत की दरकारन खिड़की न दीवारखामोश रातों मेंसूनी राहों मेंइनका बसेरा होता है रोज़ होते हैंबेघरजाने क्योंसवेरा होता है Share this:TwitterFacebookLinkedInRedditWhatsAppEmailLike this:Like Loading... संबंधित पोस्ट Published by नितेश मोहन वर्मा "हसरतों का पीछा करता रहा, ज़िन्दगी बस इक तलाश बन के रह गयी।" कवि, लेखक, मुसाफिर। अपने सफर और अपनी तलाश से मैं आपके लिए कुछ ख़याल लेकर आया हूँ। इन्हें पेश कर रहा हूँ कविताओं, कहानियों और शायरी के रूप में। View all posts by नितेश मोहन वर्मा