न छत की दरकार
न खिड़की न दीवार
खामोश रातों में
सूनी राहों में
इनका बसेरा होता है
रोज़ होते हैं
बेघर
जाने क्यों
सवेरा होता है
हिंदी कहानियाँ, कवितायेँ, ख़याल
न छत की दरकार
न खिड़की न दीवार
खामोश रातों में
सूनी राहों में
इनका बसेरा होता है
रोज़ होते हैं
बेघर
जाने क्यों
सवेरा होता है
भूल न जाए ये ज़माना। ऐ मौत तेरे आने से पहले, कुछ लफ्ज़ छोड़ जाऊँ किताबों में मैं। Exploring life, with some humor. Indian | Poet #HindiPoetry #शायरी #Poetry