चौकीदार की वर्दी क्यों काली या खाकी या बेरंग नीली होती है? भारी मोटे साँस न ले पाने वाले कपड़े से बनी वर्दी का क्या महत्व है? रोज़ सुबह ये भारी बेरंग वर्दी पहनते हीं बुधिया अपने आप को बेबस सा पाता है।

पढ़ें इस कहानी का पहला और दूसरा अध्याय

कोई भी आये, सलाम ठोक दो। कोई भी गुज़रे, खड़े हो जाओ। ऊपर की मंजिलों से सूखता किसी का कच्छा, बनियान, कमीज़ गिर जाये तो सीढ़ियों पर दौड़ते हुये जाओ और वापस कर आओ। घर पर दूध न हो, नमक न हो, माचिस न हो, निम्बू न हो। बुधिया को आवाज़ लगा दो। बिजली का बिल भरना हो, केबल वाले से शिकायत करनी हो, मुन्ने की साइकल का पंक्चर ठीक कराना हो। बुधिया को आवाज़ लगा दो।

कैसे बीत गये ये तीन साल? कुछ अरमान लिये शादीशुदा, नया जोड़ा गाँव से शहर आया था। पहली रात खिड़की से बाहर शहर को देखते हुये बुधिया ने झुमकी को अपनी बाँहों में जकड़ रखा था। गाँव से दूर दोनों एक दूसरे के कितने करीब थे? अब न नज़दीकी है, न अरमान। जब सब कुछ इतना स्थिर हो तो मन में उथल पुथल मची रहती है। इंसान न अपनी आवाज़ सुन पाता है, न हीं वो अपने खुद के भाव समझ पाता है।

कुछ गलत न हो कर भी बुधिया और झुमकी के बीच कुछ सही न था। ये उनके शादीशुदा जीवन का वो दौर था जब आलिंगन भी चुभने लगता है। न प्यार है, न बैर है़।

चौकीदार की वर्दी से शाम को छूटने वाले बुधिया के तन और मन में झुमकी के लिये कुछ करने की न हिम्मत होती है, न ज़रूरत।

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