अमीना टोकरी में बचे फूलों पर पानी के छींटें मार रही थी। कुछ हीं फूल बचे थे। ये भी शायद शाम ढलने से पहले बिक जायेंगे। नारंगी, लाल, सफ़ेद फूलों के समीप बैठी अमीना नीली सलवार कमीज में जँच रही थी। झुमकी को आता देख मुस्कुराई और छोटू को आवाज़ लगायी – “दो कटिंग चाय ले आ छोटू।”

झुमकी अमीना के पास पहुंचे, उससे पहले हीं छोटू चाय ले कर हाज़िर हो गया।

“आज बड़ी देर लगा दी झुमकी दीदी।”

झुमकी और अमीना की इस रोज़ की मुलाकात का इंतज़ार छोटू को भी रहता है।

बिना कुछ कहे झुमकी ने चाय का गिलास लिया और अमीना के पास फर्श पे बैठ गयी। दूसरे ग्राहकों की आवाज़ सुन छोटू दुकान की ओर लपका।

पढ़िए इस कहानी का पहला, दूसरा और तीसरा अध्याय

“क्या बात है री? चेहरा क्यों उतरा हुआ है तेरा ?” अमीना ने जानने की कोशिश की।

झुमकी कुछ न बोली।

“फिर वही रोज़ का लगता है तुम दोनों का।” चाय की चुसकी ले अमीना कहती रही। “अच्छा सुन न। अनवर बता रहे थे इस शुक्रवार को सलमान की वो नयी फिल्म आने वाली है। मैंने तो बोल दिया। हम रविवार के दिन देखने जायेंगे। अनवर कहाँ मना करने वाले हैं?”

“तू भी क्यों नहीं बोलती बुधिया को? एक दिन की छुट्टी तो मिल हीं जाएगी। साथ में चलें क्या…………”

झुमकी कुछ जवाब दे पाती, उसके पहले हीं अमीना ने बात पूरी कर दी – “रहने दे। तू नहीं आने वाली। मैं अनवर को बोल दूंगी। वो तो मेरे कहने पर टिकट ले आयेंगे और फिर किसी और को ले जाना होगा साथ में। तेरा हमेशा का है।”

ये रोज़ का है। अमीना की बातें, झुमकी की उदास खामोशी और छोटू की दूकान की दो कटिंग चाय। अमीना को बोल कर अच्छा लगता है। झुमकी उसकी बातों में कुछ समय के लिए खो जाती है।

“अच्छा चल मैं चलती हूँ अब। आज सारे फूल नहीं बिक। तुझे कुछ चाहिए क्या ?” झुमकी ने न में सिर हिलाया। अमीना टोकरी उठा चल पड़ी।

अमीना के पास बोलने को इतना कुछ कैसे होता है ? वो घर भी संभालती है और बाजार में रोज़ाना फूल बेचने भी आती है। घर पर अनवर है, सास ससुर हैं, एक ६ साल का बेटा भी है। इतना सब कैसे संभाल लेती है। कोई शिकायत नहीं। हमेशा खुश। हमेशा एक चुलबुलापन।

क्यों बुधिया मुझे अनवर की तरह खुश नहीं रख पाता? सोच में डूबी झुमकी बेमन से घर को लौट चली।

Leave a Reply