रिश्ते कुछ कुछ पौधों की तरह होते हैं । प्यार की धूप, अपनेपन की बूँदें और खट्टी-मीठी बातों की खाद से रिश्ते फलते फूलते हैं । ये सब न हो, तो पौधों के जैसे धीरे धीरे मुर्झा जाते हैं । बस इक टीस रह जाती है । लेकिन एक बात है । मुर्झाये रिश्तों में फिर से जान आ सकती है । सवाल ये है की पहल कौन करे?

बुधिया या झुमकी?


झुमकी की पूरी कहानी पढ़िए – पहला अध्याय


अजीब सी दुविधा है । बुधिया कहना चाहता है । झुमकी चाहती है की बुधिया कुछ कहे । लेकिन एक दुसरे के भाव से दोनों अनजान हैं ।

आज बुधिया ने देखा था । तीसरी मंज़िल पर रहने वाले डॉक्टर साहेब ने कार में बैठने से पहले कैसे अपनी पत्नी को गले से लगाया था । बुधिया तो बस देखता रह गया । काम से लौटते हुए सारा समय वो नज़ारा उसकी आँखों के सामने घूमता रहा । उसने कभी झुमकी को ऐसे गले नहीं लगाया । क्यों नहीं लगाया?

डॉक्टर या चौकीदार? प्यार तो एक जैसे हीं होता है । क्यों उसने कभी ऐसे प्यार नहीं किया ?

पति पत्नी के बीच ये कैसी दूरी ? कैसा सँकोच ? बुधिया अगर खड़े हो कर शाहरुख़ के जैसे बाँहें फैला ले तो झुमकी दौड़ कर लिपट जायेगी । सवाल अब भी वही । पहल कौन करे ?

कमरे में सन्नाटा अब इतना तेज़ था की शायद बुधिया कुछ कहे भी तो झुमकी सुन न पाएगी ।

आज की रात बुधिया फिर हार गया । वो बस झुमकी को देखता रहा । मेज़ के पास दीवार से पीठ लगा वो शून्य में देख रही थी । बिलकुल जड़ ।

Leave a Reply