जगन्नाथ के देश में
परदेसी के भेस में
खाली झोली
तेज़ है बोली –
जय जगन्नाथ। जय जगन्नाथ।
***
तेरी नगरी आया हूँ
ढ़ेर मुरादें लाया हूँ
कर दे पूरी
भर दे झोली
तेज़ है बोली –
जय जगन्नाथ। जय जगन्नाथ।
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मंदिर के बाहर की बुढ़िया
बोली तू सबकी सुनता है
राजा क्या? क्या भिखारी?
हर मानस तेरी जनता है
दे कर मुझको फूल का थैला
बुढ़िया भी ज़ोर से बोली
जय जगन्नाथ। जय जगन्नाथ।
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वो बीमार बालक
उसका थका हुआ सा बाप
हो-हल्ला करता
ग्रामीणों का जत्था
वर्दी में सिपाही, धोती में पुजारी
रोगी-योगी। दानी-भोगी।
तू हर मन में बसता
जय जगन्नाथ। जय जगन्नाथ।
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मन में बसने वाले
तुझसे क्या हीं छुपा है?
न मन की व्यथा
न मन की बात
तो भर दे झोली
तेज़ है बोली
जय जगन्नाथ। जय जगन्नाथ।
जय जगन्नाथ🙏🙏🙏 | अति सुंदर रचना है आप की|
धन्यवाद 🙏 दिवाली के अवसर पर श्री जगन्नाथ पुरी जाने का सौभाग्य मिला