ये कहानी है एक अबला लड़की की जिसने कलयुग की दुर्गा बन अपने ऊपर हो रहे अत्याचार और अत्याचारी का नाश किया। ये लड़की औरों जैसी अबला न बन पायी। इसमें प्रतिकार करने की छमता थी। ये उस एक पल की कहानी है जब उसने साहस कर खुद को अभिमान दिया। नारी बन उसने नारीत्व को सम्मान दिया।

कलयुग की दुर्गा

डरी, सहमी सी वो

भोर होने से पहले 

थाने की चौखट पे पहुँची

लड़की के हाँथों में खून लगा देख

थानेदार ने पूछा

“क्या हुआ लड़की? 

किसने लूटा

अपना सब हार के आयी है क्या?”

पर चेहरे पे ज्वाला देख

ठिठक गया थानेदार

“क्या री लड़की?

किसी को मार के आयी है क्या?”

सिसकती, काँपती वो बोली

“मैंने वध किया है साहब”

***

कुर्सी से उचक कर मुनीम बोला 

“सर, ये तो कलियुग की दुर्गा जान पड़ती” 

थाना मरदाना ठहाकों से गूँज उठा 

थानेदार गुर्राया 

“चुप कर! क्या बकती है लड़की?”

निर्जीव शरीर में नयी जन्मी दुर्गा 

निर्भीक बोली 

“बकती नहीं हूँ

अब तक बेजान रही 

निर्विरोध, निर्वस्त्र दिया है साहब 

जिस्म की आन, स्त्री सम्मान 

अपना सर्वस्व दिया है साहब

पर बोलो, कब तक? 

देवी की कटार से आज 

मैंने वध किया है साहब”

***

सन्नाटा

थाने में सन्नाटा

भोर की पहली पहर में सन्नाटा

मुनीम खामोश, थानेदार चुप

न अखबार बोले, न चैनल की आवाज़

ऐसा जैसे पूरे शहर में सन्नाटा

देवता गुमशुदा, मानव शर्मिन्दा

आज कलयुग की दुर्गा जागी है

अबला का वार, दानव संहार

आज कलयुग की दुर्गा जागी है 

भौंचक्के मर्दों की कतार पार कर

लड़की दरवाज़े से लगी बेंच पे जा बैठी 

“आओ साहब, क्या है दफा तुम्हारी?

मुझे इलज़ाम दो

मैंने वध किया है

अब दया न करना

मेरी जीत का मुझे सम्मान दो

मैंने वध किया है”


कलयुग की दुर्गा की ये कहानी सांकेतिक है, लेकिन ये भी सच है की ऐसी कई औरतें ऐसे ही अत्याचार की कगार पर हैं। इस हद तक उन्हें दबाया कचोटा जा रहा है की अब उनके उत्थान का ज़िम्मा देवी की कटार पर है।

4 विचार “कलयुग की दुर्गा&rdquo पर;

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