भोले तेरे दर पर आया हूँ
अपने हिस्से का ज़हर लाया हूँ
जटाधारी, नीलकंठ
मैं तेरे चरणों पर
दया कर हे भोलेनाथ
हर ले मेरा भी ज़हर
कांसे का पात्र नहीं
ज़हर अपने भीतर लाया हूँ
***
अथाह समंदर, जो है निरंतर
उसका ज़हर है तेरे अंदर
कंठ में समाये बैठे हो
ओ भोले! ओ गंगाधर!
हर ले मेरा भी ज़हर
***
ईर्ष्या, घृणा, द्वेष
वासना और स्वार्थ का मेरे रक्त में मेल
मानव सा मैं दिखने वाला
असुरों सा मेरा खेल
क्या मैं पश्चाताप करूँ?
इस मुँह कैसे तेरा जाप करूँ?
हे शिव शम्भू! हे शिव शंकर!
या तो बेड़ा पार कर
या त्रिशूल का वार कर
हर ले मेरा भी ज़हर
***
बलिदान मेरा स्वीकार कर
या मनुष्यता का दान कर
या मानव बन मैं जाऊँगा
या अघोरी का मुझे तू भस्म कर
हर ले मेरा भी ज़हर
शीश झुका कर आया हूँ
अपने हिस्से का ज़हर लाया हूँ
भोले! तेरे दर पर आया हूँ
वाह वाह ! कई वाक्यांश बहुत ही निखार कर उभरे हैं :
मानव सा मैं दिखने वाला
असुरों सा मेरा खेल
धन्यवाद रविंद्र जी