बेवजह के कारणों में मशरूफ हम खुशियों के कई पलों को अनदेखा कर देते हैं। क्या करें ज़िन्दगी अब भागती नज़र आती है। चलो कोई बात नहीं। एक फैसला कर लेते हैं आज। सप्ताह के ६ दिन भागेंगे लेकिन एक दिन हम जीवन का, रिश्तों का, अपनों का त्यौहार मनायेंगे। और रविवार से अच्छा दिन कौन सा हो सकता है। तो चलिए, साथ मिल कर रविवार मनाते हैं।
प्रिये सुधा
जगजीवन बाबू को सेवानिवृत हुए ८ साल हो चुके हैं। २ साल पहले उनकी धर्मपत्नी सुधा का देहाँत हो गया था। एक बेटी है मेघा। वो शादी के बाद से ही अमेरिका में रहती है। उम्र के आख़री पड़ाव का अकेलापन अब काटने लगा है। जगजीवन बाबू अपने मन की व्यथा व्यक्त करने के लिए अपनी दिवंगत पत्नी को खत लिख रहे हैं।