दिन के थपेड़ों से
जूझ कर,
टूट कर ।

भयभीत आता हूँ
तेरे काले सन्नाटे के आलिंगन में।

निर्भीक जाता हूँ,
मैं ले कर नया सवेरा।।


रात करवटों की दास्ताँ थी कल
कागज़ बेवफा,
कलम बेज़ुबाँ थी कल ।


न नींद आई न तुम आए,
हर घड़ी इश्क का इम्तिहाँ थी कल ।


तेरे अन्धकार में छुप जाना चाहता हूँ।

ऐ रात अब देर न कर।

कहीं कोई देख न ले ये मेरा थर्मिन्दा चेहरा।

5 विचार “रात और मैं&rdquo पर;

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