कमीज़ कुछ मैली, पाँव में छालें भी हैं
खाली जेब से खुद्दारी की रीत निभाते हैं
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हमारे झोंपड़े की टपकती छत देख उन्हें हमें खरीदने का साहस हुआ
अरे इस पानी को समेट हम बाहर बरगद को सींच आते हैं
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हाँ हमारी रोटियों पे मख्खन का लेप नहीं होता
पर आये कोई मेहमान अगर, हम खीर बनाते हैं
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मुश्किलों का खौफ उसे जो महलों में पला हो
हम रोज़ घर वापस ज़िंदगी की जंग जीत आते हैं
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सैलाब से बचने को तूने ऊँची मंज़िलें बाँध लीं
हमने दिन अपने तूफानों के बीच काटे हैं
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