झुकना हमने सीखा नही ज़िन्दगी को हम ताक पर रखते हैं हो मौत की फ़िक्र क्यों गँगा में हम राख बन बहते हैं

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नितेश मोहन वर्मा

हम झुक जायें, हो नहीं सकता हम रुक जायें, ऐसा होगा नहीं इरादों से तूफानों को मोड़ देना हमें आता है बना डालो ऊँची इमारतें रास्तों पे तुम हिम्मत से फौलादों को तोड़ देना हमें आता है

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नितेश मोहन वर्मा

मज़दूर हैं, मजबूर हैं कोयला हैं हम तुम जो चिंगारी बनोगे तो दहकना हमें आता है

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नितेश मोहन वर्मा

समँदर का ऊफान नहीं, दरिया सा शाँत चित्त हमारा रोज़ी-रोटी कमाते हैं जब हो ज़रुरत, ह्रदय में उन्माद लिये बहकना हमें आता है

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नितेश मोहन वर्मा

हर फ़िक्र को धुआँ कर उड़ा देना हमें आता है इरादों से तूफानों को घुमा देना हमें आता है

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नितेश मोहन वर्मा

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