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देखा है कभी शाँत समँदर तुमने? स्थिर है, पर तूफ़ान का उफान समाये है हमारे भी इरादों में तूफ़ान है जब भी किसी ने ललकारा, हम कोहराम मचाये हैं

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हाथ में कलम लेकर नौकरी को जाते हैं पर तलवार चलाना हमें आता है तोड़ डालो अन्याय की अपनी ऊँची इमारतों को हर दीवार गिराना हमें आता है

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हाँ कामगार हैं हम, अदब से अपने हक़ का सम्मान चाहते हैं  पर इम्तिहान न लेना हमारे सब्र का तुम रुकते नहीं हम जब इन्तेक़ाम चाहते हैं 

नितेश मोहन वर्मा

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