दिन के थपेड़ों से
जूझ कर,
टूट कर ।
भयभीत आता हूँ
तेरे काले सन्नाटे के आलिंगन में।
निर्भीक जाता हूँ,
मैं ले कर नया सवेरा।।
रात करवटों की दास्ताँ थी कल
कागज़ बेवफा,
कलम बेज़ुबाँ थी कल ।
न नींद आई न तुम आए,
हर घड़ी इश्क का इम्तिहाँ थी कल ।
तेरे अन्धकार में छुप जाना चाहता हूँ।
ऐ रात अब देर न कर।
कहीं कोई देख न ले ये मेरा थर्मिन्दा चेहरा।