औरतों पर अत्याचार कोई नयी बात नहीं है। और ये घरेलु हिँसा, अत्याचार और बलात्कार किसी शहर या देश तक सीमित नहीं है। बावजूद इसके हम बड़े ज़ोर शोर से हर वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (विमेंस डे) का आयोजन करते हैं। या तो ये अत्याचार बन्द करो या फिर औरतों का ये त्यौहार बन्द करो। इसी विषय पे आधारित है मेरी ये हिंदी कविता – औरत का त्यौहार मनाना बन्द करो।

औरत का त्यौहार मनाना बन्द करो | महिला दिवस पे हिंदी कविता

महिला दिवस पे हिंदी कविता – औरत का त्योहार

मुझ तक आने के लिये हवा भी इजाज़त माँगती है
बाज़ारों में
परिवारों में
दबती हूँ, लुटती हूँ मैं
और सुना है किसी एक दिन
तुम औरत का त्योहार मनाते हो

या तो मेरा त्योहार मनाना बन्द करो
या इन्सानियत को शर्मसार बनाना बन्द करो
अगर यूँ मुखौटे में रहना है तुम्हें
ये घर-परिवार बनाना बन्द करो

दोष कुछ मेरा भी है
कायदों में सिमट जाना स्वीकार किया
देवी बनी, दुर्गा नही
निर्बल रही
नहीं कभी प्रतिकार किया

चलो लिखती हूँ नई गाथा
विजय की, बलवान की
रखूँगी मान रिश्तों का मैं
पर रखूँगी मान स्त्री पहचान की

देवी का सिँहासन नही
स्वर्ण, पुष्प, श्रृंगार नही
नारीत्व मेरा बल, मेरा संकल्प
पौरुष की कोई ढ़ाल नही
कोई एक दिन का त्योहार नही

ये द्वन्द अब मेरा है
मेरा सम्मान, मेरी पहचान
पुरुषों की नगरी में
नारी का स्थान

तुम ढ़ोल-नगाड़ा बंद करो
खींच लो हाँथ
सहारा बंद करो
ये मुखौटा तुम उतार दो
बाजार सजाना बंद करो
औरत का त्यौहार मनाना बंद करो।

5 विचार “औरत का त्यौहार मनाना बन्द करो&rdquo पर;

  1. बहुत सशक्त कविता | जोश लाने वाली | साधुवाद आपको |
    जरूर लिखते रहें महिलाओं के सशक्तिकरण की कविता कहानियाँ | मैंने भी अपनी क्षमता अनुसार कुछ कुछ कभी कभी लिखा है |

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